झारखंड में सियासी उठापटक जारी है। चुनाव आयोग की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अयोग्य घोषित किए एक हफ्ता बीत चुका है, लेकिन राज्यपाल ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है।शायद वे किसी मौके कि तलाश में हैं कि कब सोरेन गुट कमजोर पड़े और कब पत्ते खुलें।
इसी वजह से झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30, कांग्रेस के 16 और राजद का एक विधायक यहां-वहां घूम रहे हैं। वैसे तो इस महागठबंधन के पास 50 विधायक हैं, यानी बहुमत से 8 अधिक। फिर भी इन्हें टूट का डर है। कहीं भाजपा सत्ता पाने के लिए इनके दो-तिहाई यानी कम से कम दस विधायकों को अपने में ना मिला लें।
वहीं हेमंत साेरेन को अयोग्यता की चिट्ठी अब तक ना देने के मायने यहीं समझे जा रहे हैं कि अंदर ही अंदर कोई ना कोई जुगाड़ जरूर चल रहा है। हालांकि राज्यपाल के पास यह अधिकार है कि वे अयोग्यता की चिट्ठी पर अपना निर्णय जब चाहें सुना सकते हैं और अगर मन ना हो तो ना भी सुनाए।
खैर यह सत्ता का खेल है। जब तक जनता सच को नहीं पहचानेगी, यह ऐसे ही चलता रहेगा। शक्तिशाली पार्टियां दूसरी कमजोर पार्टियों के विधायकों को खरीदती रहेगी और फरेब की सत्ता चलती रहेगी।